मंगलवार, 12 सितंबर 2023

Pratyaksham Kim Pramanam


            आधुनिक युग में अक्सर ‘विज्ञान की बातें की जाती हैं, विशेषकर भारतीय विद्वत् समाज में। इनमें से कई तो परम्परागत भारतीय ज्ञानपरम्परा को पाश्चात्य विचारधारा के अनुरूप इस परम्परगत ज्ञानात्मक प्रस्तुतियों को कपोल-कल्पना (मिथ) मानते और बताते हैं। ऐसा क्यों के सवाल पर क्रमिक रूप से विस्तृत चर्चा की आवश्यकता है।

      भारतीय ज्ञान-परम्परा को मिथक कहें या विज्ञान, सहज रूप से इन्हें ‘दर्शन’ की संज्ञा दी जानी चाहिये। तत्काल स्थिति यह है कि अंग्रेजी के शब्द फिलोसोफी के हिन्दी रूपान्तरण के लिए दर्शन शब्द का प्रयोग अक्सर किया जाता है, जो न केवल गलत है अपितु जानबूझकर रचा गया षड़यन्त्र है। यह स्पष्ट समझा जा सकता है कि दर्शन का तात्पर्य ठीक ढंग से देखसुन और समझ कर जाना गया ज्ञान है—प्रमाणित जानकारी है। यह तो ‘दर्शन’ के शाब्दिक अर्थ से ही स्पष्ट हो जाता है।

      अपनी चर्चा का आरम्भ हम मनुष्य के स्वसन-प्रक्रिया से करेंगे। इस प्रक्रिया की जानकारी साईंस के माध्यम से भी प्राप्त है और अपने अनुभवों से भी जाना-समझा जा सकता है। मूल बात यह है कि एक नासिका है जिसके दो रन्ध्र हैं। बायें हाथ की और का रन्ध्र वाम-रन्ध्र है, और दूसरा दक्षिण-रन्ध्र। इन्हीं रन्ध्रों से श्वास खीची जाती है और फेंकी जाती है। 

      एक सहज प्रश्न उठता है कि किस नासिका रन्ध्र से साँसें खींची जाती हैं और किससे फेंकी जाती हैं। नासिका रन्ध्र दो हैं, इसलिए यह प्रश्न उठ खड़ा होता है।

यहाँ पर तीन स्थिति हो सकती है—

      पहली यह कि एक नासिका-रन्ध्र से साँसें खींची जाती हैं और दूसरी से फेंकी जाती हैं।

 

 

 साईंस (विज्ञान) के नाम पर भारतीय दर्शन और इतिहास को अवैज्ञानिक और कपोल कल्पना सिद्ध करने की कुचेष्टा बहुत पुराणी है- ----काल से आजतक। इस बीच साईंस ने भी ऐसे कई प्रमाण ढूँढ निकाले हैं जो भारतीय दर्शन और इतिहास को सत्यपरक् सिद्ध करने लगे हैं। इसमे सम्बन्धित विवरण पर कई प्रकार से विवरण अंकित किये जा सकते हैं। इन विवरणों को फिलहाल टालते हुए कुछ ऐसे तथ्यों की ओर बढ़ते हैं जो स्वयं में ही प्रमाणस्वरूप क्योंकि ये प्रत्यक्ष-दर्शन या प्रमाणिक अनुभूति के रूप में हमें प्राप्त हो जाते हैं।

श्वासका लेना-छोड़ना ही जीवन का कारण है और प्रमाण भी। यही व्यवहारिक जीवन में पाया भी जाता है।

 

            चन्द्रमा पर चन्द्रयान का लैन्डर

दिनांक 23-8-2023 को भारतीय चन्द्रयान-3 का लैंडर चन्द्रमा के उत्तरी धरातल पर उतरा। इस विन्दु (point) को भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ‘शिवशक्ति की संज्ञा दी है। यह नाम सर्वथा उचित है। कारण यह है कि भारतीय मान्यताओं के अनुसार चन्द्रमा का सीधा सम्बन्ध भगवान शिव और उनकी शक्तिरूपा भगवती पार्वती से सीधा सम्बन्ध है। ‘चन्द्र को भगवान शिव के ललाट की शोभा माना गया है। अर्थात्, चन्द्रमा को शिवजी अपनी ललाट पर धारण करते हैं। साथ ही, ऊर्जा (शक्ति) की दृष्टि से वह (चन्द्रमा) ‘सोम का प्रतीक है। शिव की भार्या स्वयं सोम संज्ञक शक्ति-स्वरूपा हैं। वैदिक विज्ञान के अनुसार ऊर्जा की दृष्टि से पृथ्वी ‘अग्नि-प्रधान’ है जिस कारण उसे अग्निगर्भा कहा गया है। और, चन्द्रमा ‘सोम-प्रधान’ माना गया है जिस कारण उसका प्रकाश शान्त और शीतल अनुभव किया जाता है। इन दोनों तथ्यों का प्रणाण हम सबों को प्रत्यक्षरूप से मिल जाता है। इसलिए, स्थिति की दृष्टि से चन्द्रमा का सम्बन्ध ‘शिव और ‘सोम प्रधानता के कारण ‘शक्ति से है। ये दोनों ही कथन सत्यात्मक हैं—प्रत्यक्ष हैं। इन सबकी व्याख्या भारतीय विज्ञान (वैदिक विज्ञान) करता है जिसे सामान्य शब्दों में ‘दर्शन कहा जाता है।

धरती और शिव का सम्बन्ध

भूगोल सम्बन्धी विवरणों में ‘पृथ्वी के का जिस प्रकार से उल्लेख किया गया है, उस इस धरती पर एक पर्वत है ‘कैलाश जिसे भगवान शिव का स्थान बताया गया है। इसकारण उन्हें ‘कैलाशपति के नाम से भी जाना गया है।  त दचन्द्रमा  इस दृष्टि से प्रधानमंत्री मोदी का वह नामकरण बिल्कुल सही और यथोचित है। हम प्रत्येक वस्तु को भौतिक चश्मे से देखने के आदि हो गये हैं। हमें ऊर्जा-तत्व (energy) की दृष्टि से देखने चाहिये। इस दृष्टि से देकेंगे तो समझ में आ जायेगा कि ‘शिव और शक्ति का वैज्ञानिक और भौतिक दृष्टि से विराट सम्बन्ध है।पूजनादिहम पूरी तरह ध्यान देने से चूक जाते हैं। इसके पीछे का कारण यह है कि जिस समय इन पुराणों का अध्ययन अंग्रेजी-ज्ञान आधारित विद्वानों ने किया उस का साईंस उतना विकसित नहीं था जितना की आज (इक्कीसवीं) सदी में है। हम पूर्व के साईंटिफिक ज्ञान के आधार पर ही उन विवरणों को समझना चाहते हैं। फलतः बड़ी गल्तियाँ हो जाती है।

पूजनादि कार्यों के क्रम में ‘आसन-शुद्धि संज्ञक एक मंत्र पढ़ा जाता है जो असल में पृथिवी की स्तुति से सम्बन्धित है। इसमें पृथिवी की स्तुति में कहा गया है—‘‘एहि पृथिवी, त्वयं धृता लोकां देवि, त्वं विष्णुणांधृता, त्वं चा धारय मां देवि। पवित्रं कुरु चासन्।’’ इस स्तुति से ज्ञात होता है कि यह पृथिवी लोकों (सात लोकों) को धारण करती है (त्वयं धृता लोकां देवि)। साथ ही, वह सूर्यरूप विष्णु को भी अपने ऊपर धारण करती है (त्वं विष्णुणांधृता)। पौराणिक विवरणों में के धरती के दो स्वरूपों का विवरण मिलता है—सप्तद्वीपवती पृथिवी और हमारी यह धरती जिसे पृथ्वी कहा गया है। विष्णुपुराण के द्वितीय अंश के दूसरे अध्याय में भूगोल (गोलाकार धरती) के विवरण में बताया गया है कि सप्तद्वीपवती इस धरती पर विख्यात पर्वत है ‘कैलाश’। भारत के धर्मग्रन्थों में और लोकमान्यताओं में इसे भगवान शिव का स्थान माना गया है। ऐसी मान्यताओं का कारण इसमें कुछ अलौकिकता का प्रत्यक्ष दर्शन है। हिमालय पर्वतश्रृंखला का सबसे ऊँचा पर्वत में इससे भी ऊँचा है कारण है कि यह बड़ा रहस्मय पर्वत है। इसका आकार और वर्ण दोनों ही रहस्यमय है।  जिसे भगवान शिव का स्थान बताया गया है। इसकारण उन्हें ‘कैलाशपति के नाम से भी जाना गया है।  त दचन्द्रमा  इस दृष्टि से प्रधानमंत्री मोदी का वह नामकरण बिल्कुल सही और यथोचित है। हम प्रत्येक वस्तु को भौतिक चश्मे से देखने के आदि हो गये हैं। हमें ऊर्जा-तत्व (energy) की दृष्टि से देखने चाहिये। इस दृष्टि से देकेंगे तो समझ में आ जायेगा कि ‘शिव और शक्ति का वैज्ञानिक और भौतिक दृष्टि से विराट सम्बन्ध है।

इसके लिये विज्ञान का आश्रय लिया जाना चाहिये। विज्ञान के दो रूप या प्रकार हैं—‘साईंस और ‘दर्शन। पाश्चात्यवादी विज्ञान को ‘साईंस कहा जाता है, जैसा कि उन्होंने स्वयं इसका नाम दिया है। भारतीय विज्ञान को ‘दर्शन की संज्ञा दी गई है। कुछ विद्वान भ्रमवश दर्शन को फिलोसफी समझने की चेष्ठा करते हैं जो की सर्वथा गलत और दोषपूर्ण है। फिलोसफी (philosophy) का तात्पर्य उस ज्ञान से है जिसे प्रमाणित करना अभी शेष है। .... ।  ‘सोम’ एक प्रकार की शक्तिमूलक ऊर्जा है। यह शक्ति और स्थिति प्रदान करती है। कहा गया है—‘सोमेनादित्यः बलिनः। अर्थात् सूर्य आदि आदित्य-देवता सोम से ही बलवान हैं। को सोम  देवताओं को इसी सोम । यह वस्तुतः विद्युत-शक्ति ही है। इसके दो रूप बताये गये हैं-सौम्य और उग्र। सौम्यरूप में इसे ही ‘सोम’ कहा जाता है जबकि इसके रौद्ररूप को ‘अग्नि’ कहा जाता है। वेदों में भी बताया गया है कि ‘अग्नि षोमात्मकं जगत्।’ अब सूर्य ‘अग्नि’ का प्रतीक है तो चन्द्र ‘सोम’ का। विदित हो कि योग विद्या में भी इसका उल्लेख है। इड़ा नाड़ी चन्द्र-शक्ति (सोम) का वहन करती है और पिंगला सूर्य शक्ति (अग्नि) का।

 चन्द्र और सूर्जो शक्ति (तापकत) और सौम् के विद्युत-शक्ति के ही दो रूप हैं—अग्नि और सोम। सोमस्वरूप में यह ऊर्जा शान्त और सौम्य है, जबकि अग्नि उसका ही रौद्रस्वरूप है। ऊर्जा के इस सौम्यरूप को शिवजी अपने मस्तक पर धारण करते हैं, इसलिये चन्द्रमा उनके ललाट की शोभा है। विदित हो कि सूर्य को शक्ति के रौद्ररूप का प्रतीक है।

 

 

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एकोअहम् द्वितीय नासित

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